नसरीन सबा खान की पांच गजलें



नसरीन सबा खान की गजलों में जो बागी तेवर है उससे कभी-कभी डर भी लगता है। उनसे जब भी बात होती है एक खनखनाहट के साथ कुछ न कुछ टूटने की आवाज आती है। शायद यही वजह है कि पत्रिकाओं और खासकर उर्दू वालों ने उन्हें अभी तक अपनाया नहीं है। बहरहाल कंप्यटर, किताबें और फेसबुक के बीच उनकी एक अलग दुनिया है। 
 
 हम तो हरचंद नजरें चुराते रहे
और वो बारहा मुस्कराते रहे

एक पड़ोसी के घर का न चूल्हा जला

उम्र भर हम जकात लुटाते रहे

अपने मां-बाप से बदसलूकी की

और जन्नत के सपने सजाते रहे

क्यूं जरूरी तेरी बंदगी ऐ खुद

ये सवालात हमको सताते रहे

उनकी नजरों में थी प्यार की रोशनी

हम हवस जान नजरें चुराते रहे

था सफर भी कठिन, पांव में आबले

हौसले थे, जो हमको चलाते रहे

हमने रश्मों को तोड़ा, बगावत भी की

और तुम बस हमें आजमाते रहे
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गम से है सरशार दिल ये मेहरबानी आपकी

फिर भी है हमदम ये मेरी जिंदगानी आपकी

जाइए अन्ना जी अब खामोश ही रहिए आप

सुन के जनता थक गई लनतरानी आपकी

खून है जोश और ना वलवला है जहन में

बेसबब और बेवजह है नौजवानी आपकी

मुफलिसी में किस तरह रुख फेरते अहबाब हैं

अब ये जाना किस लिए है बदगुमानी आपकी
आपने देखी कहां है मुल्क की बदहालियां
आप तो खुश हैं कि चमकी राजधानी आपकी

हर जगह जिल्लत, हिकारत और रुसवाइयां मिलीं

और अब करवाएगी क्या हक बयानी आपकी
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मेरी कलम ने लिखा है जो हक बयान में है

इसी लिए तो ये तल्खी मेरी जबान में है

न जाने कितनी रुतें बीत गईं और अब भी

कि बेटा आएगा बुढिय़ा इसी गुमान में है

चलो ये माना मुझे तुम से हो गई उलफत

मगर समाज तेरे मेरे दरम्यान में है

खिजा रसीदा है मौसम कि अब चले आओ

कोई खुशी नहीं बिन तेरे इस जहान में है

हुई जो शाम तेरी यादों के दरीचे खुले

तेरा ख्याल फकत दिल के इस मकान में है

सबा जो रूठ गई, क्या चमन पे गुजरेगी

ये खदशा हमेशा गुलसितान में है
खदशा - शंका
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कुछ नहीं होगा मगर आस लगाते जाओ
इस सियासत से फकत धोखे खाते जाओ

हम नवाई के लिए हाथ में ले कर कंदील

ऐसे जलसों में चलो, भीड़ बढ़ाते जाओ

झोंपड़ों में है अंधेरे की सियाही गहरी

बेवजह जलसों में कंदीलें गलाते जाओ

अदल और हक की करो बात कटा के गरदन

बेहिसों को भी तुम आइना दिखाते जाओ

वो तो जालिम है सबा समझे न अफसाना तेरा

बेमुरव्वत से किसी तरह निभाते जाओ

हम नवाई- आवाज मिलाने के लिए

कंदील - मोमबत्ती 

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तफरके मजहबी हवालों में
मंदिरों में भी और शिवालों में

एक लमहे में टूटे सारे भरम

जो बनाए थे कितने सालों में

ये सियासत और यहां लोगों

चोरियां होती हैं उजालों में

लोकपाल आएगा ये सुनकर भी

आस क्यूं् कर है इन दलालों में

वस्ल की दिल में आरजू ही रही

तुमको पाया फकत ख्यालों में

ऐ सबा दिल की बात भी सुन लो

वरना उलझी रहो सवालों में