इस हौसले को सलाम

इंडियन स्कल ऑफ माइन्स (आइएसएम, भारतीय खनन विद्यापीठ), धनबाद का नाम देश में अपनेे तरह के इकलौते संस्थान के लिए जाना जाता है। इंगलैंड के रोयल स्कूल ऑफ माइन्स और जापान के माइनिंग कॉलेज ऑफ जापान की तर्ज बनाया गया आईएसएम आज दुनियाभर में अपनी उच्च गुणवत्ता वाली खनन शिक्षा के नाम के लिए जाना जाता है। माइनिंग इंजीनियरिंग के आकांक्षी दुनियाभर के छात्र यहां नामांकन के लिए लालायित रहते हैं। लेकिन इसी संस्थान में कुछ छात्र ऐसे भी हैैं जो शिक्षा के साथ समाज की बेहतरी की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इसके लिए आईएसएम में कर्तव्य और स्कील डेवलपमेंट सेंटर जैसी इकाइयों का गठन किया गया है। इन इकाइयों के जरिये साधनहीन परिवारों के बच्चों को अंगरेजी स्पीकिंग, संगीत, पेंटिंग, योगा और नाटक आदि विधाओं की शिक्षा यहां के छात्रों की ओर से मुफ्त दी जाती है। और इनका भी संचालन आईएसएम के छात्र खुद करते हैं। बीटेक की छात्रा प्रीती खरे आर्ट एंड क्राफ्ट की क्लासेज चलाती हैं, तो तीसरे वर्ष की छात्रा वासवी नंदिनी बच्चो के साथ आसपास के महिलाओं को भी पढ़ाने का काम करती है।
                ऐसे ही छात्रों में से एक छात्रा हैं इंदुमती। इंदुमती का नाम गरीब बच्चों के लिए योगा क्लासेज की शुरूआत करने के लिए अलग से लिया जाता है। 
इंवायरमेंटल साइंस की अंतिम वर्ष की छात्रा इंदुमती आंध्रा प्रदेश के जयंतीपुरम टंडा गांव (जिला कृष्णा) की रहने वाली हैं। चार वर्ष पहले जब इंदुमती ने यहां दाखिला लिया तो उनके मन में समाज के लिए कुछ अलग से करने की योजना थी। लेकिन क्या करना है यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। कर्तव्य संस्था के संपर्क में आने के बाद उनको जैसे दिशा मिल गई। उनसे पहले यहां योगा क्लासेज नहीं लिए जाते थे। इंदुमती ने अपने स्तर पर ऐसे गरीब बच्चों को इकट्ठा करना शुरू किया जिनको कि शारीरिक स्तर पर योगा से लाभ पहुंचाया जा सकता था। इनमें कुछ अपंग यानी नि:शक्त बच्चे भी शामिल थे। इंदुमती ने ऐसे १७ बच्चों को योगा सिखाना शुरू किया। जल्दी इनकी संख्या बढक़र ४० हो गई।
इसकी प्रेरणा कहां से मिली, पूछने पर इंदुमती बताती हैं, उन्होंने कहीं पढ़ा था, जीवन तब तक संपूर्ण नहीं होता जब तक कि पास के ज्ञान को दूसरे तक न पहुंचाया जाए। शायद गीता का भी यही संदेश है। चूंकि उन्होंने मिडिल स्कूल (इंदुमती की स्कूलिंग नवोयदय विद्यालय से हुई है) स्तर से ही योगा सीखना आरंभ कर दिया था, इसलिए उन्होंने योगा के प्रसार-प्रचार का फैसला लिया। कैंपस के छात्रों का सहयोग था ही, उनके माता-पिता ने भी कभी उन्हें इस तरह के कार्यों से नहीं रोका।
बहरहाल योगा कक्षाओं का सिलसिला चल पड़ा। जो कि सप्ताह में प्रत्येक रविार को इंदुमती लेती हैं। जल्दी ही इसका सुखद परिणाम भी देखने के लिए मिला। इंदुमती याद करते हुए बताती हैं,  इसी वर्ष अप्रैल में बिहार की संस्था - बिहार स्कूल ऑफ योगा के ५० साल पूरे हो रहे थे। इस अवसर पर इस संस्था ने आईएसएम में तीन दिनों का कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर देश भर के प्रतिभागियों ने योगा का प्रदर्शन किया। इन प्रतिभागियों में इंदुमती के सिखाए हुए बच्चे भी शामिल थे।
इंदुमती कहती हैं, यह सब इतना आसान भी नहीं था। बच्चों में आत्मविश्वास से लेकर टेस्ट तक की लंबी प्रक्रिया थी। साथ ही उनकी अपनी परीक्षाएं भी शुरू होने वाली थीं। इन सबसे ऊपर कठिनाई यह कि गरीब बच्चों के पास अच्छे कपड़े भी नहीं थे। जो खास योगा क्लासेज के समय पहने जाते हैं। इनके अभिभावक इतने सक्षम नहीं थे, कि पहनावे का खर्च वहन कर सकें। इंदुमती ने अपने सहयोगियों और आईएसएम के योगा शिक्षक से इसमें सहयोग के लिए कहा। लेकिन फिर भी पूरे पैसे का इंतेजाम नहीं सका। बाकी पैसों का इंतेजाम इंदुमती ने अपने जेब खर्च से किया।
ऐसा भी नहीं है कि इंदुमती खुद धनी परिवार से है। एक भाई और चार बहनों में इंदुमती दूसरे नंबर पर हैं। पिता किसान हैं और बाकी समय में एक निजी सीमेंट कंपनी में छोटी सी नौकरी करते हैं। प्रतिभा के बल पर इंदुमती को मिडिल स्कूल के समय से ही छात्रवृति मिलती रही है। इंदुमती अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता सुभद्रा, पिता इस्लावतु अर्जुन के साथ ही इलेमेंटरी टीचर सीएच सत्यनारायण, दुर्गा मैडम को देती हैं। जो कि इलाके के बच्चों को मुफ्त में आज भी शिक्षा दे रहे हैं। साथ ही वे अपने एमपीयूपी स्कूल के शिक्षकों के योगदान का भी जिक्र करती हैं।
अगले साल इंदुमती की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो रही है। तब शायद उन्हें यह शहर यह छोडऩा पड़े। लेकिन उनकी ओर से शुरू की गई योगा क्लासेज चलती रहेंगी। इसके लिए उन्होंने अपने जुनियर साथियों को अभी से तैयार करना आरंभ कर दिया है।

(इंदुमती से indu.me9@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)