कहानी को राइटर नहीं कैरेक्टर लिखता है



INTERVIEW – Shivam Nair






           आहिस्ता-आहिस्ता (2006) जैसी खूबसूरत फिल्म बनाने वाले निर्देशक शिवम नायर बॉलीवुड मे एक अलग नजरिये और ट्रीटमेंट को लेकर जाने जाते हैं। हालांकि कोई बहुत बड़ी हिट फिल्म उनके खाते में अब तक नहीं है। लेकिन इसी माह 31 मार्च को रीलिज होने वाली उनकी फिल्म, नाम शबाना एक खास उत्सुकता है। इस सिलसिले में उनसे बातचीत के बहाने फिल्म की कहानी कैसी हो, पर भी बात हुई। वे साफ तौर पर कहते हैं, कहानी को राइटर नहीं, कैरेक्टर लिखता है। किसी फिल्म में कैरेक्टर एक पूरी यात्रा तय करता है। एक बार जब आप कैरेक्टर को स्टेबलिस्ट कर लेते हैं, तो कैरेक्टर खुद कहानी को आगे बढ़ाने लगता है। और इसी यात्रा में कहानी का डीएनए बनता है। जो यह तय करता है कि कहानी की बनावट और नेचर क्या होगी। वो किस दिशा में आगे जाने वाली है। बहरहाल शिवम नायर निर्देशित इस फिल्म की कहानी वेडनेस डे वाले नीरज पांडे ने लिखी है। नीरज पांडे इस फिल्म के निर्माता भी हैं। नाम शबाना को लेकर जब शिवम नायर से बात करने का मौका आया तो, सबसे  पहले मन में यही सवाल आया कि 2008 के बाद, आठ सालों के अंतराल पर उनकी ये निर्देशित फिल्म रही है। हालांकि इसके बाद 2015 में महेश भट्ट कैंप की भाग जानी उनकी निर्देशित फिल्म आई। पर ये फिल्म उनकी कम और भट्ट कैंप की अधिक थी। सो इस फिल्म में उनकी कोई छाप दिखी ही ये फिल्म दर्शकों या बाक्स आफिस ही कोई छाप छोड़ पाई। दूसरी तरफ इम्तयाज अली, अनुराग कश्यप, अनुभव कश्यप, अब्बास टायर वाला ये कुछ बड़े नाम है, जिनकी कामयाबी के पीछे कहीं कहीं शिवम नायर का योगदान रहा है। इम्तयाज ने अपनी पहली फिल्म आहिस्ता-आहिस्ता शिवम नायर के लिए ही लिखी थी।  उनसे पहला सवाल यही किया कि आहिस्ता-आहिस्ता और महारथी के बाद इनका गैप क्यों...

-        आहिस्ता-आहिस्ता अच्छी फिल्म थी। पर हम उसकी बेहतर ढंग से मार्केटिंग नहीं कर पाए। बल्कि ज्यादा सही ये कहना होगा, अब फिल्मों को बनाने के साथ उसकी मार्केटिंग भी सफलता का एक बड़ा हिस्सा बन गई है। पहले ऐसा नहीं था। इसिलए हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। रिजल्ट हुआ कि फिल्म ने रिकवरी तो की पर प्रॉफिट नहीं दे पाई। 2008 में आई महारथी में हमने इसका ध्यान रखा। इसकी कहानी और कास्टिंग भी बड़ी थी। नसिरुद्दीन शाह, ओम पुरी, परेश रावल और बोमन इरानी जैसे नाम थे। पर ठीक इसके रीलिज के कुछ दिन पहले होटल ताज में आतंकियों का ब्लास्ट हुआ था। जिससे बहुत दिनों तक लोग थियेटर गए ही नहीं। इसके बाद 2015 में भाग जानी आई। इस फिल्म को मैंने सिर्फ निर्देशित किया। निर्माता से जो करार था, उसके मुताबित मैं इसमें बहुत हस्तक्षेप नहीं कर पाया।

-          फिल्म नाम शबाना पर आते हैं, ये क्या है---
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   तापसी पन्नु फिल्म में मुख्य भूमिका में है। फिल्म में वो एक मुस्लिम लड़की के किरदार में है, जिसका नाम शबाना है। शबाना खुफिया एजेंसी रॉ की स्पाई है। सीबीआई, सीआईडी और रॉ पर भी बालीवुड में कई फिल्में आ चुकी हैं, पर इस फिल्म में हमने खुफिया एजेंसी रॉ के स्पाई को केंद्र में रखा है। ये एजेंसियां कैसे अपना स्पाई चुनती हैं, जो कि आम आदमी के बीच से ही चुना जाता है, और फिर कैसे उनको ट्रेनिंग दी जाती है। किस तरह के खतरों से ये स्पाई गुजरते हैं, इसे दिखाने का मकसद था। वह भी तब एक स्पाई को किसी तरह की रिकगनिशन या सम्मान नहीं मिलता। ऑपरेशन के दौरान उनकी जान भी चली जाए तो किसी को इसकी भनक तक नहीं मिलती। किसी अखबार में खबर नहीं छपती। एक तरह से स्पाई को बिना किसी लालच या लस्ट के देश और दूसरों के लिए अपनी जान को जोखिम में डालना होता है।  

कहानी का आइडिया का कहां से आया...
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    इससे पहले नीरज पांडे की फिल्म बेबी आ चुकी है। ये फिल्म रॉ पर ही बेस्ड थी। इस फिल्म में भी तापसी पन्नु स्पाई बनी थी औऱ उसका नाम भी शबाना था। इस फिल्म में इस कैरेक्टर का एक्सटेंश है। ये फिल्म शबाना की बैक स्टोरी है। बालीवुड में ये पहली बार है जब किसी फिल्म का नहीं बल्कि कैरेक्टर का सिक्वल होगा। हालीवुड में इसे स्पीन ऑफ कहा जाता है।  तो इस कैरेक्टर में कुछ बताएं--- फिर कहानी
 तापसी मुस्लिम लड़की है और किसी भी जुल्म को बर्दाश्त नहीं कर पाती है, तुरंत रिएक्ट करती है। कोई भी बात स्टेट वे में बोल देती। उसकी लाइफ में क्लारिटी है। वो मार्शल आर्ट की एक विधा कुडो में नेशनल चैंपियन बनना चाहती है। रॉ की रिक्रूटमेंट एजेंसी चार साल उसको नोटिस कर रहे हैं। और उसे अपना स्पाई बनाना चाहती है। इस बीच शबाना एक हादसे का शिकार होती है और अपने ब्वाए फ्रेंड को खो देती है। इस मुश्किल घड़ी में रॉ के लोग उसकी मदद करते हैं और उसे एजेंसी जोडते हैं। सिचुएशन कुछ ऐसी बनती है कि शबाना को एक ऑपरेशन में मलेशिया भेजा जाता है। जबकि उसकी ट्रेनिंग भी पूरी नहीं हुई है। ये ऑपरेशन सक्सेस होता है और शबाना रॉ की स्पाई बन जाती है। पूरी कहानी का प्रीमाइज यही है।

फिल्म में मनोज वाजपेयी, अक्षय कुमार और डेनी के कैरेक्टर के बारे में बताएं..

-       मनोज वाजपेयी रॉ के ट्रेनर की भूमिका में हैं। ये कैरेक्कटर कोल्ड ब्लड का है, और उसकी कोई पर्सनल लाइफ नहीं है। वो इतना कोल्ड है कि राज खुलने पर अपने ही साथी को मर्डर कर या करवा सकता है। इस रोल के लिए एक अलग तरह की इमोशन चाहिए। जिसे रेगुलर एक्टर नहीं कर सकता था। वो शबाना को ट्रेनिंग देने के साथ मोटिवेट करते हैं और बताते हैं कि एक स्पाई की रिस्पांस्बिलिटी क्या होती है। अक्षय शबाना की मदद करने तब पहुंचते हें जब वो मुश्किल में घिरी होती है। डैनी रॉ और सरकार के बीच को-ओरडिनेट करते हैं। फिल्म में अनुपम खेर भी रॉ के मेंमबर में एक अहम भूमिक में हैं। इसके अलावा मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार पृथ्वीराज सुकुमारन इसमें विलेन की भूमिका हैं। जो बार-बार अपना चेहरा बदल लेता है। इसलिए उसे पकड़ना मुश्किल है। वो दुनिया भरे के टेररिस्ट आर्गनाइजेशन को फिनांस करता है, आर्म्स सप्लाई करता है। क्राइम की दुनिया में उसका एक बड़ा नेटवर्क है। लोग इस कैरेक्टर को भूल नहीं पाएंगे।   

बेबी आतंकवाद के खिलाफ थी। इस फिल्म का आइडिया भी वहीं से आया है। तो एक तरह से ये फिल्म भी आतंकवाद के इर्दगिर्द घूमती है। इस फिल्म का दायरा क्या है...

ग्लोबल स्तर पर जो आतंकवाद है या अपने यहां जो आतंकवाद है देश की भीतर
-       फिल्म की कहानी आतंकवाद की आसपास होते हुए भी आंतकवाद की कम और एक स्पाई की ज्यादा है। फिल्म में मनोज वाजपेयी और तापसी का एक बहुत ही अहम सीन है। मनोज और तापसी का ये पहला सीन है। इस सीन से आप इस का दायरा समझ सकते हैं। इस सीन में मनोज तापसी को कंवींस करते हुए कहता है, ये जो रास्ता है स्पाई बनने का, ये तुम्हारे च्वाइस पर है। क्योंकि तुम्हें इसमें कुछ नहीं मिलना है। इसमें पुलिस और आर्मी की तरह न तो वर्दी मिलेगी न तो फेम मिलेगा और न ही सोसायटी में तुम्हें कोई तुम्हें कोई रिस्पेक्ट मिलने वाला है। क्योंकि तुम्हें कोई जानेगा ही नहीं। तुम्हें सिर्फ इसी लिए चुना जा रहा है कि तुम्हें अच्छे और बुरे की समझ है। सोसायटी में अगर तुम अमन के साथ जीना चाहती हो तो ये सिर्फ चाहने से नहीं होगा। क्योंकि हमारा सर राउंडिंग ऐसा नहीं है। यहां टेरर है, व्यालेंस है, गलत सोच है। इन सबको बदलना होगा। और इनको बदलने के लिए कुछ करना होगा। यहां फैली बुरी चीजों की सफाई करनी होगी। और इसके लिए जिस जुनून की जरूरत है, वो तुम्हारे अंदर है। ये जो फिल्म की इनर व्यास है, मैं समझता हूं कि इससे फिल्म का दायरा बड़ा हो जाता है। 



अमूमन खुफिया एंजेसियों क बारे में जानकारी या रिसर्च करना कठिन होता है। आपकी टीम ने ये कैसे किया...
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           नीरज पांडे की पहली जो फिल्म थी, ए वेडनेस डे, उस वक्त उन्होंने कुछ रिसर्च किया था। फिर जब बेबी बनी तो कुछ रिसर्च हुआ। फिर, बाकी इस फिल्म को प्लान करते समय हुआ। सबसे अहम बात थी फिल्म का आईडिया। आपको एक रोचक बात बताऊं। पिछले साल ही नीरज पांडे की फिल्म धोनी आई। नीरज धोनी की शूटिंग करने रांची जा रहे थे। रांची जाने से पहले उन्होंने कहा कि एक आइडिया है जिसपर फिल्म बन सकती है। फिर रांची से स्काइ एप पर उनसे बात हुई कि रांची से लौटने के बाद स्क्रीप्ट पर काम करना है। और रांची से लौट कर उन्होंने एक सप्ताह में स्क्रिप्ट लिखकर मुझे दे दी। फिर आगे का काम शुरू हो गया।
  
आमतौर पर कोई लेखक जो खुद एक सफल निर्देशक भी हो, अपनी स्क्रिप्ट दूसरे को निर्देशित नहीं करने देता। उपर से नीरज के बारे में ये कहा जाता है कि उनकी स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई होती है कि आप स्क्रिप्ट लेकर सीधे शूटिंग लोकेशन पर जा सकते हैं। ऐसे में आप उन्होंने आप पर कैसे भरोसा किया...

-       इसकी दो वजह हो सकती है। एक शीतल भाटिया जो कि नीरज के बिजनेस पार्टनर हैं, उनसे मेरी पुरानी पहचान है। उनके जरिये नीरज से मुलाकात होती रहती थी। दूसरे एक जमाने में टीबी पर हम तीन निर्देशकों की धूम थी। मैं, अनुराग बसु और श्रीराम राघवन। सी हाक्स सीरिज उसी जमाने में बनाई थी। ये बहुत पोपुलर हुई थी। ये सब कुछ नीरज के सामने की बात है। फिर जब उन्होंने ए वेडनेस डे बनाने की सोची तो, मुझे स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए दी। बाद में ए वेडनेसडे से अंजुम रिजवी को एक प्रोड्यूसर के रूप में मैंने ही जोडा था। इन कारणों से हो सकता है एक ट्यूनिंग बन गई हो। जो कि बॉलीवुड में काम करने के लिए बहुत जरूरी होती है।

ये सब तो ठीक है, पर जब तक आप कहानी से खुद को कनेक्ट नहीं करते, एक अच्छी फिल्म बना भी नहीं सकते। आपने इस कहानी से खुद को कनेक्ट कैसे किया। या इस कहानी में ऐसा क्या था जिसने आपको एक्साइटेड किया होगा...

-    मुद्दा। इस फिल्म का जो ईश्यू है, उसने मुझे एक्साइटेड किया। अगर आपने ए वेडनेस डे देखी है तो आपको उसका आखिरी सीन याद होगा। जिसमें नसीरुद्दीन शाह पुलिस अफसर अनुपम खेर से कहते हैं, एक कॉमन मेन की ताकत को कभी कम मत समझना। ये जबतक सहन करता है खामोश रहता है। लेकिन जब वो बाहर निकलता है तो सिस्टम को चैलेंज कर सकता है। उससे टकरा सकता है। वो किसी भी हद तक जा सकता है। आप देखिए तो पूरी फिल्म यहीं पर दिखाई पड़ती है। इसी तरह नाम शबाना के एक सीन में मनोज वाजपेयी तापसी से कहता है, हम कहां जा रहे हैं, नाम, पैसा, सक्सेस और पापुलिरीटी के पीछे भाग रहे हैं। लेकिन जिस दुनिया में हमको रहना, उसे सेफ करने के लिए कोई नहीं सोच रहा है। जबकि सबसे ज्यादा जरूरी यही काम है। हम इस काम को किसी और के भरोसे नहीं छोड़ सकते। और इसके लिए जुनून चाहिए। इस सीन में मनोज तापसी यानी एक कॉमन मेन के अंदर वही जुनून पैदा करता है। पूरी फिल्म यहीं से खड़ी होती है। इसने मुझे सबसे ज्यादा एक्साइटेड किया। और जब आप एक्साइटेड होते हैं, तो कंवीक्शन भी अपने-आप पैदा होने लगता है।

फिल्म की शूटिंग कहा-कहां हुई और गानों के बारे में बताएं...

-       लगभग आधी शूटिंग मलेशिया में हुई। फिर मुंबई और दिल्ली में भी कुछ सीन शूट गए हैं। फिल्म में चार गाने हैं। जो सब्जेक्ट के साथ चलते हैं। ऐसा नहीं है कि अचानक से कोई गाना शुरू हो जाए। एक बहुत ही प्यारा रोमांटिक गाना है। संगीत विकी डोनर फेम रोचक कोहली और ओह माइ गॉड फेम मीट ब्रदर्स के मनमीत सिंह और हरमीत सिंह ने दिया है। इसके लिए कुछ खास सीन के लिए कोमेल का संगीत है।  


   नाम शबाना के बाद क्या...
   
   दो-तीन फिल्मों पर अलग-अलग लोगों से बात चल रही है। एक तो ए वेडनेस डे के निर्माता अंजुम रिजवी के साथ और एक फिल्म झारखंड में खेल की पृष्ठभूमि पर प्लान में है। मैं झारखंड में लंबे समय तक रह चुका हूं सो इस फिल्म को लेकर भी मेरी खास दिलचस्पी और जुड़ाव है।