सांप्रदायिकता की जुबान

शिंदे के बयान पर खुश होने वालों के लिए



गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की जानिब से आरएसएस पर दिए गए बयान में कितनी सच्चाई है यह तो अलग विषय है। लेकिन इस बयान पर जिस तरह से लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे पाकिस्तानी  संगठनों की बांछें खिल गई हैं्, वह इससे कहीं ज्यादा दिलचस्प है। शिंदे के बयान का स्वागत करते हुए इन दोनों ही संगठनों ने आरएसएस और बीजेपी पर बैन लगाने की वकालत की है। बता दें कि जमात-उद-दावा पर पहले से बैन लगा हुआ है लश्कर अपनी हकरतों के कारण दुनिया भर में बदनाम है। पाकिस्तान का  मजबूत हिमायती मुल्क अमेरिका इस पर बैन लगाने की लगाने की तैयारी कर रहा है। बहरहाल, पाकिस्तान में पल-बढ़ रहे ऐसे दर्जनों संगठनों को पहले अपने गिरेबान झांकना चाहिए कि ये खुद अपने मुल्क और अपने पड़ोसी मुल्क हिंदुस्तान में क्या कर रहे हैं। क्या ये संगठन आरएसएस के पाकिस्तानी संस्करण नहीं हैं? भारतीय सैनिक का सिर काट कर ले जाने की शह पाकिस्तानी सैनिकों को कहां से मिलती है। अफजल गुरु और कसाब जैसे दहशतगर्द कहां से पैदा किए जा रहे हैं। पार्लियामेंट पर हमले के लिए कहां से पैसा और प्लान आता है। और भारत में भी विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस, शिव सेना जैसी ताकतों के पनपने, परवान चढऩे के पीछे आखिर कौन सी वजहें काम कर रही होती हैं। पाकिस्तान से बहने वाली फिरकापरस्त हवा कैसे इनके लिए भारत में ऑक्सीजन का काम करती है। इन सवालों के जवाब भी इन संगठनों को देने चाहिए। दरअसल आरएएसएस हो या तैयबा या जमात-उद-दावा वगैरह। सभी अपने-अपने मुल्कों में अमन और आम आदमी के दुश्मन हैं। इन्हें न भूख से बिलबिलाती अवाम दिखाई देती है न ही करप्शन का मकडज़ाल। आखिर यह कितना हैरत करने वाला है कि पाक सुप्रीम कोर्ट देश के प्रधानमंत्री परवेज अशरफ को गिरफ्तर करने का हुक्म जारी करता है और ऐसे संगठनों के लिए ये कोई मुद्दा नहीं होता। कनाडा से आकर तहीरुल कादिरी पाकिस्तान में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाते हैं और उनकी एक आवाज पर लाहौर की सडक़ों पर साढ़े तीन लाख युवा उतर आते हैं। ये भीड़ भी इनको नहीं चौकाती। इनका मुद्दा बनता है दूसरे और पराये मुल्क का आरएसएस। हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान, इनका एक ही मकसद होता है पॉवर, सियासत और सत्ता की कुरसी। और इसके लिए या तो ये राजनीतिक पार्टियों का इस्तेमाल करते हंै या राजनीतिक पार्टियां इनका इस्तेमाल करती हैं। ये दुकानदारी देश के बंटवारे के साथ चल रही है। और हर जगह इनकी जुबान, भाषा भी एक ही होती है। दहशत और खौफ फैलाना। पाकिस्तान चाहे कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए कितनी भी बातें कर ले, लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि  इस्लामाबाद में कोई भी ऐसी सरकार नहीं बन सकती जो कश्मीर के मुद्दे पर भारत को सहयोग करे। या जो कश्मीर को अपना हिस्सा नहीं मानती हो। कम से कम भारत में ऐसी हालत नहीं है। अपने तमाम राष्ट्रवादी, हिंदुवादी लटकों-झटकों के बावजूद आएसएसएस की अलमबरदार पार्टियां दिल्ली की सत्ता पर बैठने के लिए दशकों से हाथपैर मार रही हैं। जनता ने इन्हें एक मौका देकर इसका हस्र भी देख भी लिया। दरअसल यह हिंदुस्तानी सेकुलरिज्म की ताकत है। जो कितनी भी बदशक्ल हो, कमजोर नहीं हो सकती। हिदुस्तानियों ने (जिसमें हिंदू भी हैं और मुसलिम भी) ने ये साबित करके दिखाया है। बार-बार। अनगिनत मौकों पर।
इसलिए आरएसएस पर बैन की वकालत बुलंद करके जमात-उद-दावा और तैयबा ने खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। 
- जेब अख्तर