लालदीप गोप की तीन कविताएं

लालदीप गोप की कविताएं हमेशा से ध्यान खींचने वाली रही हैं। हमारे समय की क्रूरता और अश्लील मजाक को लालदीप ने जिस गहराई और वैज्ञानिक नजरिये के साथ महसूसा है, उसकी मिसाल  अन्यत्र मिलना मुश्किल है। वे समाज पर एक सजग प्रहरी की तरह नजर ही नहीं रखते बल्कि नए आयाम के साथ हमारे सामने प्रस्तुत भी करते हैं :
   


जमीन 

 चलो अच्छा
कल से
नहीं घिसने होंगे बर्तन
रोटियां बनाते हुए
अब नहीं जलेंगी हथेलियाँ
झाड़ू, पोंछा बर्तन, कपडे
सब साफ करेगी
मैंने पूछा स्रस्द्मह्व
मेरे दोस्त ने
इत्मीनान होते हुए कहा
एक आया मिल गयी है
कहाँ की है ?
अबकी वह थोड़ा गंभीर हुआ
घर पूछने पर
बस इतना ही कहती है
साहब,जहाँ आपका आफिस है
                      वो जमीन हमारी थी.                      
 
                                                                     
                                                                       चाँद की चाहत

बीती रात चाँद
खिड़की पर आकर
टंग गया था
हमे वह सुनाता रहा
नील आर्मस्ट्रांग के
कदमो की आहट
अपनी शीतलता के किस्से.
वह चाहता है
अनंत काल तक
घूमता रहे पृथ्वी के गोलार्द्ध में
अपने रहस्य की
परतों को खोलता रहे
ज्ञान की परिधि से
बाहर खींचता रहे मनुष्य को
और आर्मस्ट्रांग के
कदमो से अपनी
  
देह की थकान
मिटाते रहे. 
                                                        
                                                                         मुख्यधारा
सामने आठ मंजिला
ईमारत बनकर तैयार है
किसी मजदूर को आधे
किसी को पूरे पैसे
थमा रहा है ठेकेदार
कुछ हल्ला कर रहे है
कुछ खामोश है
जंगल की तरह .
मौसम बदल रहा है
मज़दूर अब लौटने लगे है
अपने घर
बस नहीं लौट सका तो
बिनोद हांसदा
बीमार बेटी के लिए
दवा खरीदने गया था
सड़क के उस पार
तुम ऑउटसोर्सिंग लेबर हो
यंहा दवा नहीं मिल सकती तुम्हे      .
कहकर पुर्जी थमा दी थी डॉक्टर ने
उसके मोटे, मैले, सिमेंट से
सने हाथों में .
जिनके लिए वह बनता रहा
ऊँची ऊँची इमारतें
बिना गश खाए
तपती दोपहर में
जोड़ता रहा एक एक छड को
उनके ही लाडलों ने
कुचल दिया सड़क पर बाइक से
दवा बिखरी थी सड़क पर
और छितराया था उसका शरीर .
अस्पताल में डॉक्टर ने नब्ज टटोली
अब भी उसके मोटे हाथों में
सिमेंट की गर्द जमीं थी
लेकिन नब्ज स्थिर
हो गयी थी
बेटी बुखार से तपती रही
पत्नी धूल से सने                                                         
उसकी देह पर
अपना सिर पटकती रही
मज़दूर उसकी डेड बॉडी
लेकर चले गए
मुआवजे की कोई
घोषणा नहीं
न ही एक मिनट का मौन
लहू पीकर चुपचाप
सो रही थी सड़क
बस अख़बार में छोटी सी
खबर छपी थी
इस तरह वह
मुख्यधारा में शामिल हो गया .


परिचय
लालदीप गोप
जन्म तिथि   -  ०५/०१/१९८०
शिक्षा            -  एमएससी एवं पोस्ट ग्रेजुएट डिपलोमा इन हूमन राइटस
प्रकाशित रचनाएँ  -  च्च्तीसरी दुनिया के देश और मानवाधिकारच्च्
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता कहानी एवं आलेख    प्रकाशित
संप्रति एवं पता    -   डिपार्टमेंट ऑफ पेट्रोलियम इंजिनियरिंग
आई० एस० एम० धनबाद झारखण्ड
पिन न० - ८२६००४
मोबाईल न० - ०७६७७४१९४३४